Tuesday 19 June 2012

लू से न हों लस्त


छिटपुट छींटों के बावजूद उत्तर भारत के अधिकाश राज्यों में गर्म हवाओं या लू का प्रकोप जारी है। लू लगने पर लापरवाही बरतने पर जान पर भी बन आ सकती है।
लू क्या है
शरीर के तापमान के अचानक असामान्य रूप से बढ़ जाने को लू कहते हैं। जो लोग गर्मियों में खुले में बाहर रहकर काम करते हैं या बाहर निकलते हैं, उनमें लू लगने का जोखिम ज्यादा रहता है।
कारण
सामान्य तौर पर शरीर में स्वत: ही गर्मी उत्पन्न होती है। यह गर्मी पसीने के जरिये बाहर निकलती रहती है, लेकिन पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने से और तेज धूप में घूमने या शारीरिक श्रम करने पर यह गर्मी पसीने के जरिये बाहर नहीं निकल पाती। इस स्थिति में शरीर का तापक्रम सामान्य से कहींज्यादा बढ़ जाता है।
लक्षण
-तेज बुखार, जो 104 डिग्री फारेनफाइट या इससे अधिक हो सकता है।
-पसीना निकलना बद हो जाता है।
-त्वचा लाल रंग की और शुष्क हो जाती है।
-नाड़ी की गति असामान्य होकर बढ़ जाती है।
इलाज
-रोगी को ठंडे वातावरण में रखें।
-पीड़ित के सिर के अलावा उसके बदन के अन्य भागों पर ठंडे पानी की प˜ियों रखकर पोछें।
-रोगी को ठंडा पानी, नींबू पानी या फिर ओ.आर.एस. का घोल दें।
-तेज बुखार होने पर पैरासीटामॉल की टैब्लेट दी जा सकती है।
-अगर उपर्युक्त विधियों के बाद भी रोगी की स्थिति में सुधार न हो, तो फिर उसे निकटवर्ती अस्पताल ले जाएं।
ऐसे करें बचाव
-पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ लें। घर से पानी पीकर बाहर निकलें।
-गर्म मौसम में अगर कठोर शारीरिक श्रम वाले कार्य करना जरूरी हैं, तो काम शुरू करने से पहले सिर पर कैप या छोटा टॉवेल रख लें और पर्याप्त मात्रा में पानी पीकर कार्यरत हों।
-शरीर में पानी की कमी न होने दें। इसलिए कुछ वक्त के अंतराल पर पानी पीते रहें।
-शराब, कॉफी और चाय का सेवन न करें तो बेहतर रहेगा, क्योंकि इन पेय पदार्र्थो के सेवन से शरीर में पानी की कमी होती है।
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